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Chapter 48 (और क्या कर सकता है ये गुलाम... ")


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🔞This book contain mature scene and language , I am already given a triggered warning here , so better start reading before making your mind



🔞 bold story है खुद के risk पर पढ़े, और बच्चे दूर रहे रात के सन्नाटे में जब सब कुछ थमा हुआ था, उसके कमरे का दरवाज़ा धीरे से खुला। तीन परछाइयाँ अंदर दाख़िल हुईं मजबूत क़दमों की आहट, दबे स्वर, और अंधेरे में छुपे चेहरे।वो उन्हें देख नहीं पाई, पर उनकी मौजूदगी को महसूस करती रही... इतनी गहराई से कि वो पल उसके लिए डर और चाहत, एक अलग ही connection बन गया था उनसे । सुबह की रोशनी में सब कुछ सामान्य लगने लगा, पर उसके दिल में सवाल गूँजता रहा क्या वो फिर लौटेंगे? कौन थे वो? और क्यों हर रात उसे उनके आने का इंतज़ार रहने लगा? जवाब तलाशते हुए वो धीरे-धीरे अपने ही घर और रिश्तों के बारे में ऐसे सच से टकराती रही। जिसकी कल्पना करना भी उसके लिए नामुमकिन था।



समंदर ने उसकी किस्मत निगल ली थी… और जब उसने आँखें खोलीं तो खुद को एक ऐसे टापू पर पाया, जिसका नाम किसी नक़्शे पर नहीं था। न कोई रास्ता, न कोई उम्मीद—सिर्फ़ चार अजनबी, जिनकी निगाहों में भूख थी… भूख सिर्फ़ जीने की नहीं, उससे कहीं गहरी और खतरनाक। जो शुरुआत में ज़िंदगी बचाने की जद्दोजहद थी, वही धीरे-धीरे एक खतरनाक खेल में बदलने लगी— इच्छाओं, जलन और पाबंदी तोड़ने वाली चाहतों का खेल। हर रात लहरें अपने राज़ फुसफुसाती थीं। हर दिन टापू अपनी क़ीमत वसूलता था। और इस क़ैद बने स्वर्ग में उसे महसूस हुआ कि कुछ भूख कभी मिटती नहीं… और कुछ इच्छाएँ, एक बार जाग जाएँ तो सब कुछ निगल लेती हैं।

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